पँचमी- #नवरात्री माता स्कंदमाता की कथा।

स्रोत : https://twitter.com/saket71/status/1051397781976272896

 कथा स्कंदपुराण से- व्याख्या लेखक की #Navaratri2018 #Skandamata

गौरी और शिव के विवाह के पश्चात कैलाश की छटा ही भिन्न थी। संगीत की लहरें कामनाओं का संदेश लिए सहस्त्रो दिशाओं मे तैरती थीं। प्रात: शिव पार्वती की वार्ता में दार्शनिक वाद विवाद मे मानव अस्तित्व के नियम निर्धारित होते, तत्पश्चात योग का अभ्यास, गणों भोजन को उपस्थित होते।

भोजनोपरान्त शिव पार्वती विश्राम करते, साँय काल क्रीड़ा। महादेव का कथन कि जो दंपत्ति क्रीड़ा के लिए प्रति दिन समय नही रखते, उनके जीवन मे वह नीरसता उत्पन्न होती है जो पति पत्नी के जीवन को अंतत: ग्रसित कर लेती है। द्यूत के क्रीड़ा का आरंभ शिव ने इसी विचार के साथ किया।

संगिनी का साहचर्य, नृत्य, संगीत क्रीड़ा मे शिव गौरी का जीवन, मानो स्वर्ग ने साक्षात धरा पर ही पदार्पण कर लिया हो। वहीं कैलाश से दूर दस राज्यों का युद्घ, रक्त-रंजित रावी का प्रवाह। सनातन का तंत्र शाषको के प्रभुत्व की भूख मे छिन्न भिन्न हुआ जाता था।

प्रश्न जब क्षत्रिय सार्वभौम का हो तो समस्या इतनी गूढ़ भी ना होती किंतु जब शासक सिर्फ़ बुद्धिजीवियों के लिए अप्रत्यक्ष सत्ता नियंत्रण के मूक यंत्र बन जाएँ और वास्तविक सत्ता संघर्ष विश्वामित्र और वशिष्ठ के मध्य हो तो निरपराध प्रजा की बलि युद्ध वेदि पर चढ़नी ही है।

संघर्ष शासकों का हो तो विष्णु उसका समाधान ढूँढ सकते थे, किंतु जब बुद्धजीवियो का स्वार्थ तर्क को कुतर्क मे परिवर्तित कर दे, और भाषा सामान्य समझ को आतंकित और अपमानित करने मे उपयोग हो तो शिव ही धर्म की रक्षा मे समर्थ है।

जब विवाद मे विजय के लिए कुतर्क प्रस्तुत करने वाले विश्वामित्र और विश्वामित्र हो तो धर्म की धज्जियाँ उड़नी स्वाभाविक है।धर्म है क्या? नैतिक नियम जो सामाजिक सह-अस्तित्व एवम् जीवन की निरंतरता को बनाए रखें।

वशिष्ठ और विश्वामित्र जैसे ज्ञानी सिर्फ़ वैचारिक  वरिष्ठता हेतु गौधन की हत्या का कुतर्क देने लगे, यअभी जब जनपद बसने प्रारंभ ही हुए है, और कृषि- प्रधान जीवन की प्रधानता आखेटकीय जीवन पद्धति पर स्थापित हो रही है, गऊ जो उसका आधार है, उसकी रक्षार्थ शास्त्रार्थ शिव के सिवा कौन करे।

शिव की उपेक्षा की अग्नि मे नव-स्थापित आर्याव्रत पितृहीन होकर धू धू कर जल रहा है। विष्णु के अनुसार इस से बचाने के लिये महादेव को सांसारिक कर्तव्य की ओर आकर्षित करना आवश्यक था। किंतु समस्या तारकासुर की भी थी जिसने ब्रह्मा से यह वर प्राप्त किया था कि उसकी मृत्यु शिवपुत्र के हाथो हो

किंतु आर्याव्रत रहे ही ना तो तारकासुर से रक्षा किसकी की जाएगी। प्रथमत: तो आर्याव्रत की रक्षा हो। तलहटी के वनों मे अग्नि का विस्तार जनपदों को लीलने लगा तो गणों द्वारा शिव तर समाचार पहुँचा। मानव पर संकट सदा की भाँति शिव को विचलित कर गया, और शिव मैदानों की ओर उतर आए।

अग्नि का उन्मूलन भी हुआ और युद्ध का अँत भी। विश्वामित्र और वशिष्ट भी समझ गए कि कृषिमूलक समाज के मूल मे स्थित गौ को चौपड़ पर पड़ी कौड़िया बना कर वे कितनी बड़ी भूल कर रहे थे। शाँति तो व्याप्त हुई किंतु इस विंध्वंस मे मृत वीराँगना कृतिका का पुत्र शिव को अनाथ प्राप्त हुआ।

इसका समाचार सुदूर तारकासुर तक पहुँचा जो आर्याव्रत पर आक्रमण की योजना मे यह जान कर कि शिव के दाम्पत्य मे अग्नि द्वारा डाले गए विध्व के कारण निकट भविष्य मे शिवपुत्र की भय नही है।

किंतु विधि का विधान, कि छह कन्यायो की प्रतिभा लिए कृतिका के पुत्र को शिव जब कैलाश पहुँचे, गौरी के नेत्रों से अबोध अनाथ बालक के भीरू दीर्घ नेत्र देख अश्रु एवं वक्ष से दुग्ध धारा बह निकली। शिव ने बालक कार्तिकेय को गौरी की गोदी मे देते हुए कहा “ यह है स्कंद, कार्तिकेय”

गौरी ने स्नेहपूर्वक उसे कँठ से लगाया और बोली, “महादेव, आज मैं माता होकर जीवनदायिनी हुई। मैं स्त्री का देवरूप हुई और सृष्टि की निरंतरता का सूचक। इस बालक ने भने ही मेरी कोख से जन्म ना लिया हो, यही मेरा प्रथम जन्मा है। यही कुमार स्कंद आज से शिव पुत्र कार्तिकेय है।”

शैलपुत्री के कन्या रूप से ब्रह्मचारिणी का तपश्चर्यारत रूप से होते हुए, शिव अरधांगिनी चँद्रघँटा और जीवदायिनी कुष्मांदा के पश्चात स्कंदमाता मातृ रूप संपन्न हुआ। तारकासुर के नराधम अस्तित्व का प्रारब्ध लिखा जा चुका था कार्तिकेय के स्कंदमाता को पुत्र के रूप मे शिवपुत्र होने के साथ 🙏

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