जो दलित पीला पीला मैला ढोते हैं – वो कभी ऊँचीं जात के हिन्दू हुआ करते थे

जो दलित पीला-पीला मैला ढोते हैं – वो कभी ऊँचीं जात के हिन्दू हुआ करते थे – खुलासा जिसको पढ़कर आपकी रूह काँप जाएगी

ये है दलितों का इतिहास – भारतीय समाज में ना जाने कब और कहाँ से जात का बड़ा गन्दा चक्कर आ जाता है और एक हिन्दू समाज जो अपनी एकता के लिए मशहूर था वह अचानक से कई टुकड़ों मेंविभाजित हो जाता है.

आज जो लोग दलित हैं और दलित के नाम पर हर तरह का सामाजिक बहिष्कार झेल रहे हैं वह एक समय ऊँची जात के ब्राह्मण ही थे.

आजादी के समय के कई बड़े और प्रमुख नेता यह बात अच्छी तरह से जानते थे कि आज के दलित लोग ऊँची जाति के लोग हैं किन्तु इतिहास में इनसे मैला और गंदे काम कराकर हम इनका अपमान कर रहे हैं. लेकिन फिर भी इन नेताओं ने इस बात को खुलकर शायद इसलिए नहीं बताया था क्योकि इससे समाज में दो बड़े धर्मों में नफरत जन्म ले सकती थी.

मुस्लिम शासक जब भारत में आये तब तक भारतीय लोग घर से बाहर ही मल करते थे किन्तु मुस्लिम राजाओं के यहाँ घर के अंदर ही मल की व्यवस्था थी. तब इस गंदगी को साफ़ करने के लिए उन हिन्दू वीर योद्धाओं को लगाया गया था जो युद्ध में बंदी बनाये गये थे. इन योद्धाओं को अवसर दिया गया था कि या तो यह इस्लाम स्वीकार कर लें या फिर मल साफ करें. यह योद्धा इतने वीर थे कि इन्होनें इस्लाम स्वीकार नहीं किया और गंदे काम में लग गये थे.

अपने धर्म और जात का अपमान ना हो इसलिए यह अपने ही लोगों से दूर भी हो गये थे. बाद में हिन्दू समाज ने इनको बाहर कर दिया और इनको सदा के लिए दलित बनाकर मैला ढोने के काम पर ही लगा दिया.

दलितों का इतिहास – अंग्रेजों ने दिया था दलित नाम

इतिहास के कई किताबों में बताया गया है कि इन वीर हिन्दू लोगों को दलित नाम अंग्रेजों ने दिया था. इनको अंग्रेजों ने दलित इसलिए बोला था क्योकि यह लोग मुस्लिम शासकों द्वारा शोषित थे और तन-मन-धन से इनका शोषण किया गया था. असल में अंग्रेज इतनी अच्छे नहीं थे कि वह किसी के साथ अच्छा करें. भारत का भला तो वह किसी भी कीमत पर करना नहीं चाहते थे. भारत को इन्होनें जो भी मशीनरी दी है वह अधिक से अधिक लालच के चक्कर में ही दी गयी थी.

इन वीर हिन्दू लोगों को दलित घोषित करके इन्हो नें समाज को दो हिस्सों में विभाजित किया था.

यह वीर हिन्दू तो पहले ही दयनीय अवस्था में थे इसलिए अंग्रेजों ने इनको पहले और शोषित किया और और बाद में इनको इसाई बनाने का गन्दा खेल खेला गया था.

जब दलितों को समझ आया कि अंग्रेज हमको अपने समाज से बाहर कर रहे हैं तब भी दलितों ने मिशनरी का विरोध किया और कैसे भी हिन्दू समाज में बने रहना ही स्वीकार किया.

इस तरह से आप अगर दलितों का इतिहास पढ़ते हैं तो आप जान जाओगे कि यह लोग हिन्दू ब्राह्मण और राजपूत जैसी जातियों में से निकले हुए लोग हैं.

ये है दलितों का इतिहास – आज समय की आवश्यकता है कि इन लोगों को वापस अपनी धारा में शामिल होने का मौका दिया जाये.

Xpose News
Published on Jul 22, 2017

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