अग्नि में आहुति डालते हुए कहीं आप सोचें कि ये मेरा यज्ञ है,इसकी सुगंधि मेरे पड़ोसी तक नहीं पहुंचनी चाहिए क्योंकि वो मुझसे दुर्व्यवहार करता है
अग्नि में आहुति डालते हुए कहीं आप सोचें कि ये मेरा यज्ञ है,इसकी सुगंधि मेरे पड़ोसी तक नहीं पहुंचनी चाहिए क्योंकि वो मुझसे दुर्व्यवहार करता है तो ऐसा भेदभाव संभव ही नहीं.यज्ञ की सुगंध और उसके लाभ सबके लिए समान रूप से हितकारी हैं,इसीलिए-'यज्ञो वै श्रेष्ठतमं कर्म' 🔥 🔥 🔥 pic.twitter.com/gIxX5EGSNA
— Amita Arya (@arya_amita) October 7, 2018
क्या #MeToo सचमुच एक बड़ी उपलब्धि है? इस अभियान की प्रकृति और उसके असर के बारे जब मैंने सोचना शुरु किया तो मुझे जो महसूस हुआ वो मैं आपके साथ शेयर करना चाहती हूं. ”क्या यह बड़ी बात है?”-इस लेख को पढ़ने के लिए कृपया इस लिंक का अनुकरण करें... https://t.co/4p0kUhEo6q
— Amita Arya (@arya_amita) October 19, 2018
भारतीय जनमानस के साथ गंगा,यमुना,सरस्वती की त्रिवेणी और उसकी पावनता का संबंध उतना ही पुराना है जितना इन नदियों का उद्भव. #Prayagraj इसी संबंध को जीवंत करता है,जो #Allahabad नहीं कर सकता था.सांस्कृतिक उत्साह जनसमूहों की गतिशीलता के लिए जरूरी है और नामपरिवर्तन उस उत्साह का प्रतीक.
— Amita Arya (@arya_amita) October 16, 2018
वेद में कहा है- "अश्मा भवतु नस्तनुः"= हमारा शरीर पत्थर की तरह दृढ होना चाहिए. Unfortunately just chanting won't do 😞 our daily workout does 🙂 so come on “Double double toil and trouble...” 🏋️♀️ 🏋️♀️ 🏃🏻♂️🏃🏻♂️
— Amita Arya (@arya_amita) October 4, 2018
हम वही होते हैं,जिसमें हम मज़ा लेते हैं.हमारा व्यक्तित्व हमारी रुचियों का संघात है,चाहे वो प्राप्त हों या अप्राप्त.इसलिए अपने गन्तव्य तक पहुंचने का आसान तरीका यही है कि हम उसमें अदम्य रुचि पैदा कर लें.शायद इसी को योगदर्शन में ‘तीव्र संवेग’ कहते हैं.
— Amita Arya (@arya_amita) October 2, 2018
आजकल एक स्वयंभू उदारवादी संप्रदाय है.वैसे तो उसमें पढे-लिखे लोग ही बहुतायत में पाए जाते हैं लेकिन वो इतनी-सी बात क्यों नहीं समझते कि पुराना मतलब दकियानूसी और नया उदारवादी नहीं होता. बेवजह का पूर्वाग्रह और अड़ियलपना ही अनुदारवाद है,चाहे वो नवीन मान्यताओं को लेकर हो या पुरातन.
— Amita Arya (@arya_amita) September 20, 2018
'मैंने आर्यावर्त भर में भाषा का ऐक्य संपादन करने के लिए ही अपने सकल ग्रंथ आर्यभाषा(हिंदी) में लिखे और प्रकाशित किए.' -ऋषि दयानंद
— Amita Arya (@arya_amita) September 14, 2018
ऋषि दयानंद की आत्मकथा खडी बोली में हिंदी की सबसे पहली आत्मकथा मानी जाती है.
#हिंदी_दिवस
भारतीय संस्कृति हमें बताती है कि जिस चीज को हम अपने लिए नहीं चाहते उसे दूसरों के लिए मत चाहो- ‘आत्मन: प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत्।’ समलैंगिकता की पैरवी करने वाले क्या अपने प्रसंग में उन चीजों की कल्पना भी कर सकते हैं?
— Amita Arya (@arya_amita) September 6, 2018
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