देवशयनी एकादशी की पौराणिक कथा | व्रत व पूजा विधि | चातुर्मास २०१८


Vinod Pandey
Published on Jul 22, 2018

देवशयनी एकादशी क्या है | देवशयनी एकादशी व्रतविधि विष्णु जी को प्रसन्न करने के लिए देवशयन एकादशी में किन चीजों का भोग लगाएं इच्छानुसार वर पाने के लिए भगवान को भोग लगायें मनचाहा फल पाने के लिए देवशयन एकादशी पर किन चीजों का सेवन करें देवशयनी एकादशी २०१८ में त्यागने वाली वस्तुएं देवशयन के पश्चात् कुछ विशेष चीजें है जिन्हें व्रती को त्यागना होता

देवशयनी एकादशी क्या है?
वैदिक विधान कहता है की, दशमी को एकाहार, एकादशी में निराहार तथा द्वादशी में एकाहार करना चाहिए। हिंदू पंचांग के अनुसार सम्पूर्ण वर्ष में 24 एकादशियां आती हैं। किन्तु अधिकमास की एकादशियों को मिलाकर इनकी संख्या 26 हो जाती है।

कब आती हैं देवशयनी एकादशी?
 देवशयनी एकादशी या हरिशयनी एकादशी का व्रत आषाढ़ महीने की शुक्ल एकादशी को किया जाता है।

दशमी के दिन मांस, लहसुन, प्याज, मसूर की दाल आदि निषेध वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए।

* रात्रि को पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए तथा भोग-विलास से दूर रहना चाहिए।

* एकादशी के दिन प्रात: लकड़ी का दातुन न करें, नींबू, जामुन या आम के पत्ते लेकर चबा लें और अंगुली से कंठ साफ कर लें, वृक्ष से पत्ता तोड़ना भी ‍वर्जित है। अत: स्वयं गिरा हुआ पत्ता लेकर सेवन करें।

* यदि यह संभव न हो तो पानी से बारह बार कुल्ले कर लें। फिर स्नानादि कर मंदिर में जाकर गीता पाठ करें या पुरोहितजी से गीता पाठ का श्रवण करें।

* फिर प्रभु के सामने इस प्रकार प्रण करना चाहिए कि 'आज मैं चोर, पाखंडी़ और दुराचारी मनुष्यों से बात नहीं करूंगा और न ही किसी का दिल दुखाऊंगा। रात्रि को जागरण कर कीर्तन करूंगा।'

* तत्पश्चात 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' इस द्वादश मंत्र का जाप करें। राम, कृष्ण, नारायण आदि विष्णु के सहस्रनाम को कंठ का भूषण बनाएं।

* भगवान विष्णु का स्मरण कर प्रार्थना करें और कहे कि- हे त्रिलोकीनाथ! मेरी लाज आपके हाथ है, अत: मुझे इस प्रण को पूरा करने की शक्ति प्रदान करना।

* यदि भूलवश किसी निंदक से बात कर भी ली तो भगवान सूर्यनारायण के दर्शन कर धूप-दीप से श्री‍हरि की पूजा कर क्षमा मांग लेना चाहिए।

* एकादशी के दिन घर में झाड़ू नहीं लगाना चाहिए, क्योंकि चींटी आदि सूक्ष्म जीवों की मृत्यु का भय रहता है। इस दिन बाल नहीं कटवाना चाहिए। न नही अधिक बोलना चाहिए। अधिक बोलने से मुख से न बोलने वाले शब्द भी निकल जाते हैं।

* इस दिन यथा‍शक्ति दान करना चाहिए। किंतु स्वयं किसी का दिया हुआ अन्न आदि कदापि ग्रहण न करें। दशमी के साथ मिली हुई एकादशी वृद्ध मानी जाती है।

वैष्णवों को योग्य द्वादशी मिली हुई एकादशी का व्रत करना चाहिए। त्रयोदशी आने से पूर्व व्रत का पारण करें।

* एकादशी (ग्यारस) के दिन व्रतधारी व्यक्ति को गाजर, शलजम, गोभी, पालक, इत्यादि का सेवन नहीं करना चाहिए।

* केला, आम, अंगूर, बादाम, पिस्ता इत्यादि अमृत फलों का सेवन करें।

* प्रत्येक वस्तु प्रभु को भोग लगाकर तथा तुलसीदल छोड़कर ग्रहण करना चाहिए।

* द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को मिष्ठान्न, दक्षिणा देना चाहिए।

* क्रोध नहीं करते हुए मधुर वचन बोलना चाहिए।

इस व्रत को करने वाला दिव्य फल प्राप्त करता है और उसके जीवन के सारे कष्ट समाप्त हो जाते हैं।

स्वर्गलोक से इंद्रदेव, वैकुण्ठ से विष्णुजी, कैलाश से महादेव, ब्रह्मलोक से ब्रम्हाजी, और पृथ्वीलोक से पांडे जी, आपको शुभकामना देते है…
❤ धन्यवाद !
ईश्वर सदैव आप को सफल बनाये!

आपका कल्याण हो।

Comments

Popular posts from this blog