राम सूत्र ( राम की कथा ) रामचरितमानस 06/ 04/2018
राम सूत्र ( राम की कथा )
रामचरितमानस
06/ 04/2018
बटु बिस्वास अचल निज धरमा। तीरथराज समाज सुकरमा।।
सबहिं सुलभ सब दिन सब देसा। सेवत सादर समन कलेसा।।
अकथ अलौकिक तीरथराऊ। देइ सद्य फल प्रगट प्रभाऊ।।
अब कथा पढ़िए ।
बटु बिस्वास अचल निज धरमा।
अपने धर्म पर अटल विश्वास करो । अटल विश्वास की संज्ञा के लिए ही तुलसीदास जी बट वृक्ष का प्रयोग किया है ।
फिर से पढिए , कहा जाता है कि बट वृक्ष के पत्ते भगवान श्रीमन्नारायण शयन करते है । और जिसकी प्रभू में आस्था होती है उसे धर्म में अटल विश्वास होता है ।
तीरथराज समाज सुकरमा।
और यह सत्संग का जो समाज है वह जो सतकर्म करता है वह तीर्थराज प्रयाग है ।
सबहिं सुलभ सब दिन सब देसा। सेवत सादर समन कलेसा।।
तुलसीदास जी अब तीर्थराज प्रयाग से भी आगे जाकर संत समाज के संगत का महत्व बताते हैं ।
सबहिं सुलभ सब दिन सब देसा
सबहिं सुलभ
यह संतों की संगत, सबको सुलभ है । जैसे यदि आप माने तो यह फ़ेसबुक की पोस्ट भी पढ़ते समय आप संत संगत की अनुभूति कर सकते है, यदि आप चाँहें तो ।
सब दिन
और यह सब दिन सुलभ है । आपको मौनी अमावस्या का दिन नहीं देखना है । यह राम कथा आपको फ़ेसबुक हर दिन सुलभ है ।
सब देसा
और यह मुझे इंग्लैंड में सुलभ है और आप संसार में जिस कोने में रहते हो वहाँ पर सुलभ है, आपको प्रयाग जाने की आवश्यकता भी नहीं है ।
सेवत सादर समन कलेसा।
और यदि आप यह रामकथा मन लगा कर पढ़ रहे है न कि फ़ेसबुकिया पोस्ट समझ कर, तब यह राम कथा आपके सभी प्रकार के क्लेश को दूर करने का सामर्थ्य रखती है ।
अकथ अलौकिक तीरथराऊ। देइ सद्य फल प्रगट प्रभाऊ।।
अकथ ।
प्रयागराज तो कथनीय है पर यह रामकथा अनगिनत बार गाए जाने के बाद भी अकथनीय है ।
अलौकिक तीरथराऊ
ध्यान से पढ़िए । लौकिक रूप से प्रयागराज देखना हो तो आप को प्रयाग जाना पड़ेगा ।
पर यह रामकथा तो अलौकिक है ।
तो फिर से देखिए , तीर्थराज प्रयाग लौकिक है और कथनीय है पर संत समाज जो है अलौकिक है और अकथनीय है ।
देइ सद्य फल प्रगट प्रभाऊ।।
सद्य फल का अर्थ समझिए । यहाँ पर तुलसीदास जी वेदांत के शब्द का प्रयोग किया है और जैसा मैने पहले भी कहा था कि रामचरितमानस में लगभग पूरा का पूरा वेदांत ही समाया हुआ है ।
सद्य फल का अर्थ होता है, इसी जीवन में मिलने वाला फल ।
मरने के बाद स्वर्ग की बात नहीं कर रहे, बैकुंठ की बात भी नहीं कर रहे , संत समाज आपको रामकथा के माध्यम से इसी जीवन में आपको आत्मदर्शन करा देगा ।
त्रिवेणी, प्रयागराज का स्नान का पुण्य मोक्ष के लिए होगा परन्तु रामकथा , सद्य फल के लिए ।
अगली पोस्ट में
सुनि समुझहिं जन मुदित मन मज्जहिं अति अनुराग।
लहहिं चारि फल अछत तनु साधु समाज प्रयाग।।
की व्याख्या होगी ।
कमेंट्स में, जय श्री राम का अनवरत उद्घोष चलता रहे ।
Sabhar: Raj Shekher Tiwari
रामचरितमानस
06/ 04/2018
बटु बिस्वास अचल निज धरमा। तीरथराज समाज सुकरमा।।
सबहिं सुलभ सब दिन सब देसा। सेवत सादर समन कलेसा।।
अकथ अलौकिक तीरथराऊ। देइ सद्य फल प्रगट प्रभाऊ।।
अब कथा पढ़िए ।
बटु बिस्वास अचल निज धरमा।
अपने धर्म पर अटल विश्वास करो । अटल विश्वास की संज्ञा के लिए ही तुलसीदास जी बट वृक्ष का प्रयोग किया है ।
फिर से पढिए , कहा जाता है कि बट वृक्ष के पत्ते भगवान श्रीमन्नारायण शयन करते है । और जिसकी प्रभू में आस्था होती है उसे धर्म में अटल विश्वास होता है ।
तीरथराज समाज सुकरमा।
और यह सत्संग का जो समाज है वह जो सतकर्म करता है वह तीर्थराज प्रयाग है ।
सबहिं सुलभ सब दिन सब देसा। सेवत सादर समन कलेसा।।
तुलसीदास जी अब तीर्थराज प्रयाग से भी आगे जाकर संत समाज के संगत का महत्व बताते हैं ।
सबहिं सुलभ सब दिन सब देसा
सबहिं सुलभ
यह संतों की संगत, सबको सुलभ है । जैसे यदि आप माने तो यह फ़ेसबुक की पोस्ट भी पढ़ते समय आप संत संगत की अनुभूति कर सकते है, यदि आप चाँहें तो ।
सब दिन
और यह सब दिन सुलभ है । आपको मौनी अमावस्या का दिन नहीं देखना है । यह राम कथा आपको फ़ेसबुक हर दिन सुलभ है ।
सब देसा
और यह मुझे इंग्लैंड में सुलभ है और आप संसार में जिस कोने में रहते हो वहाँ पर सुलभ है, आपको प्रयाग जाने की आवश्यकता भी नहीं है ।
सेवत सादर समन कलेसा।
और यदि आप यह रामकथा मन लगा कर पढ़ रहे है न कि फ़ेसबुकिया पोस्ट समझ कर, तब यह राम कथा आपके सभी प्रकार के क्लेश को दूर करने का सामर्थ्य रखती है ।
अकथ अलौकिक तीरथराऊ। देइ सद्य फल प्रगट प्रभाऊ।।
अकथ ।
प्रयागराज तो कथनीय है पर यह रामकथा अनगिनत बार गाए जाने के बाद भी अकथनीय है ।
अलौकिक तीरथराऊ
ध्यान से पढ़िए । लौकिक रूप से प्रयागराज देखना हो तो आप को प्रयाग जाना पड़ेगा ।
पर यह रामकथा तो अलौकिक है ।
तो फिर से देखिए , तीर्थराज प्रयाग लौकिक है और कथनीय है पर संत समाज जो है अलौकिक है और अकथनीय है ।
देइ सद्य फल प्रगट प्रभाऊ।।
सद्य फल का अर्थ समझिए । यहाँ पर तुलसीदास जी वेदांत के शब्द का प्रयोग किया है और जैसा मैने पहले भी कहा था कि रामचरितमानस में लगभग पूरा का पूरा वेदांत ही समाया हुआ है ।
सद्य फल का अर्थ होता है, इसी जीवन में मिलने वाला फल ।
मरने के बाद स्वर्ग की बात नहीं कर रहे, बैकुंठ की बात भी नहीं कर रहे , संत समाज आपको रामकथा के माध्यम से इसी जीवन में आपको आत्मदर्शन करा देगा ।
त्रिवेणी, प्रयागराज का स्नान का पुण्य मोक्ष के लिए होगा परन्तु रामकथा , सद्य फल के लिए ।
अगली पोस्ट में
सुनि समुझहिं जन मुदित मन मज्जहिं अति अनुराग।
लहहिं चारि फल अछत तनु साधु समाज प्रयाग।।
की व्याख्या होगी ।
कमेंट्स में, जय श्री राम का अनवरत उद्घोष चलता रहे ।
Sabhar: Raj Shekher Tiwari
Comments
Post a Comment