लाल बिंदी और विन्ध्याचल

#लाल बिंदी और विन्ध्याचल

ये विन्ध्याचल और अगत्स्य ऋषि की कथा का क्या पागलपन है ?

अपनी भाषा मर्यादित रखो अन्यथा कोई उत्तर नहीं मिलेगा ।

लाल बिंदी : ठीक है , बताओ क्या चक्कर है ? कैसे कोई निर्जीव वस्तु को कह सकता है की अब मत बढ़ो । यह तो पूरी तरह से बकवास और गप्प है । यह कथा तो अंधविश्वास बढ़ाती है ।

मैंने कहा : कथा न तो अंधविश्वास बढ़ाती है और न ही यह गप्प है बल्कि हर कथा का एक तात्पर्य निश्चय होता है और एक तात्पर्य निश्चय इस कथा का भी है ।

लाल बिंदी : वह क्या है इस कथा में ?

इस कथा में बताया गया है की गुरू को अपने जड़ से जड़ शिष्य की सहायता करनी चाहिए और गुरू को देखना चाहिए की उसके शिष्य के किसी कार्य से समाज को कोई समस्या न खड़ी हो जाए ।

लाल बिंदी : वह कैसे ?

वह ऐसे की कथा है की एक बार विंध्याचल पर्वत को सुमेरु पर्वत से ईर्ष्या हो गई और वह भी बढ़ने लगा इससे विन्ध्याचल के आस पास के लोगों को कष्ट होने लगा । अब उसके अधिक बढ़ने से वायुमंडल और वातावरण में परिवर्तन होने की संभावना भी बन जाती तथा आसपास की औषधि और वनस्पतियों को भी नुक़सान पहुँच सकता था । तुम तो जानती ही हो की पर्वत श्रृंखलाओं की उचाई बहुत से कारकों को नियंत्रित करती है ।

लाल बिंदी : ओके

तो इस कथा के माध्यम से गुरू ने अपने जड़ शिष्य को समझाया की ऐसी प्रतिस्पर्धा न करो क्योंकि इस प्रतिस्पर्धा से किसी को कोई लाभ नहीं होगा ।

यह कथा गुरू का कर्तव्य बताने के लिए है की वह अपने जड़ से जड़ शिष्य को भी ऐसे पथ पर रखे जिससे की समाज का लाभ हो ।

लाल बिंदी: ओके बाय

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