किसान आंदोलन और महाभारत का सभा पर्व | साकेत सूर्येश

साकेत सूर्येश - 4th December 2018

गए दिनों किसान आंदोलन का बड़ा जोर रहा, भिन्न-भिन्न प्रकार के किसानों ने राजधानी की सड़कों को भर दिया और लाल-लाल टोपियों ने किसानों के सामूहिक सरों को इस प्रकार भर दिया कि सिर्फ लाल रंग की स्मृति रह जाए, कम-से-कम अगले चुनाव तक। किसानों का क्या है हल्कू तो बीसवीं सदी के पूर्वार्ध से पूस की खुली निष्ठुर ठंड से मैत्री निभाता आ रहा है। होरी के मालिक राय साहब प्रजा के पालन का पट्टा कब अंग्रेजों से लेकर नव-राष्ट्र के नए नेताओं के हाथ में थमा गए, पता ही नहीं चला। मुंशी प्रेमचंद बिना राजनैतिक लाग-लपेट के लिखते हैं, दरिद्रता में जो एक प्रकार की अदूरदर्शिता होती है, वह निर्लज्जता जो तकाज़े, गाली और मार से भी भयभीत नहीं होती, उसने उस होरी को और अधिक ऋण लेने को प्रेरित किया जबकि बिसेसर साह का भी देना बाकी है, जिस पर आने रुपये का सूद चढ़ रहा है।...

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